Monday, December 26, 2011

क्या है ये दस्तूर---जमाने का ?

 वो चल दिए, तमाम दुआएं ले कर,
दरवाजे पर उनके,
न जवाब मिला, किसी दस्तक का,
थमा दी दुआएं, मेहरी को,
सोचा पैगाम आएगा, दिल से,
लेकिन, क्या पाया  
शुक्रन न था, उनके वर्ताव मे
न जाने, कहाँ छुपा था ये मिजाज़,
दिलनशीं का,
दिए खूबसूरती के तमाम पल, उन्हें  
इस सफ़र के दरम्याँ,
क्या देख पाओगे, सितारों को टिमटिमाते हुए,
नम आखों से, साँझ ढलने के बाद,
सभलों, उठो और पहचानो,
अस्तित्व को अपने,
वर्ना गवां दोगे, इक पल मे,
अनजानी सी गलती पर,
करार दिया जायेगा, क़त्ल के गुनाह मे, उसे 
कर दिए जाओगे, दाग--दाग, तार-तार,
यही पाओगे, शराफत से हुई शराफत के मंसूबों पर,
क्यों की,
कडवी लगे हर चीज, गुजरते वक्त के साथ -साथ,
जो मीठी थी, इक वक्त मे कभी,
जहान की जहन है ये भाई,
सिखाएगा, पल-पल मे,
नई राह, ताकि भटक न पाओ
दोबारा फिर से, बार-बार
अनेकबार.

मुसाफिर क्या बेईमान


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