पहुँच उनकी मंजिलों के दरम्यां,
खोजते हर दरीबे,
हर नुक्कड़ पर गली के,
देखें तन्हा--तन्हा,
हर ख्याल मे,
उसकी सूरत को बना इक अहसास,
दिया सन्देश की मिल जाये,
इक नजर उनके दीदारों का,
उनके झरोखों से शायद,
न--मालूम था,
कि समय कहर ढायेगा इस कद्र,
लौटना पड़ा बे-रूखी से,
उनके कूचे से बे-कद्र होकर,
तन्हा-तन्हा.
मुसाफिर क्या बेईमान
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