Sunday, March 27, 2011

क्या है सच्चाई ?




 


विषय विवाद का बन गया,
और दंगे हो गए शहर मे
खूब दूंढा न मिल सका, कारण विवाद का
लकिन सैकडो मारे गए, इस गफलत मे
पूछा केवल राम से,
किस मुर्दे को जलाया, किसे दफनाया, 
कौन धर्म, जाती, कैसे पता चला जब क़त्ल किया मानव का
क्या मानोगे मेरी बात, कहा मैंने   
हर पल, हर क्षंण, बदलाव महसूस किया,
कभी जीवन मे,
कीजिये, तो पाएंगे इक उमंग, इक तरंग, 
नहीं किया, और बना लिया स्थूल सा ये जीवन.
किया बचाव, कातिल का दंगों मे
जला घर किसी का, लेकिन लपटों ने काला किया तेरे बसेरे को
निकलो बाहर इस   स्थूलता से, करों महसूस सिर्फ
बदलते हर पल, हर क्षंण को
पाएंगे विधि विधाता गोड, अल्लाह, भगवान, रचेयता की
बाटी हुई उमंगो---तरंगो को, सांसों मे,
यही सत्य है जीवन का, जब दिल करे, मानना तभी.
मानेंगे तो ठीक, वर्ना हम तो इस पथ के यात्री है,
झूठ क्या कहेंगे. 
सोचिये --------मुसाफिर क्या बेईमान-----  

I dedicate this POEM to Kewal Ram Blog
http://mohalladharmordarshan.blogspot.com/

Saturday, March 26, 2011

इल्म----बेईमान के

वो काएदे सिखाते रहे, तमाम उम्र
लुटते रहे,  चाहने वालों की चाहत मे,
गुलिस्तान बने और बिखर गए,
फिर संजोये कुछ सपने, और बनाया इक घरोंदा
Tsunami Pictures: #3 - Houses in the Aceh province of Thailand are flooded by the tsunamiखोज कर, चुन-चुन कर पूरा किया सपनो को
आया अफ्रीका से सुनामी, किया नाद जयश्री का,
बहा ले गया इस घरोंदे को, तब्दील किया महाकाल की भस्म मे,
शिकायत की खुदा से, क्यों बनाया मेरा वजूद ऐसा
जो आता, करें वश मे,  मत्रों--तंत्रों से अपने 
और कोशिश करें, मेरी सिद्धि को लूटने की
खुदा से जवाब मिला, बने रहें अपने कायदों---असूलों पर 
बनाया---सजाया---सवारा तुम्हे सिर्फ, सिखाने को तमाम उम्र
कभी तो दिखेगी, जन्नत यहाँ इस धरती पर
Red poppies and farm in the distance. Marseille, Franceबताते और बाँटते रहे, इल्म इसी कायदे के
हाँ ------- बाँटते रहे, इल्म को इल्म से

                                            *****मुसाफिर क्या बेईमान
 
                                         

Wednesday, March 23, 2011

यादें शहीदों की- -------- मुसाफिर क्या बेईमान

 स्मरण करें आज,
 इन्कलाब जिंदाबाद
जो फ़िदा हुए ,मातृ भूमि के प्रेम मे
न्योछावर किया जीवन को आजादी के संघर्ष मे
क्या इसलिए-
कि देश का धन-दौलत जमा होगा स्विस बैंक मे
खायेंगे गरीबों का- कहेंगे मेरा भारत महान
चिंतित है सिर्फ मंदिर-मस्जिद के नाम को बेचने  मे
जाती के नाम पर होंगे आन्दोलन, न बचेगा कोई बिना आरक्षण के
देश, मातृ भूमि, क्या------ देश प्रेम
सिर्फ रहेगा स्विस बैंक मे सिमट कर 
भाईचारा सिर्फ नाम है, एक दूजे को बाँटने का
करें याद आज भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव क़ी शहादतों को
कहीं बन न जाये, हम दोबारा भगत सिंह
करें  मातृ भूमि क़ी सेवा, और करें सफाई इन अमर बेलों क़ी 
आप करतें रह जायेगें, लोकतंत्र ----लोकतंत्र----
और साफ़ हो जायेगीं मातृ भूमि से, अमर बेलों का झुरमुट 
फिर हम गाएंगें वही तराना, ए---वतन, ए---वतन  
 हाँ यही तराना, बार बार ----लगातार 

Monday, March 21, 2011

सफ़र --- मुसाफिर क्या बेईमान

ये रात जिसमे चाँद कहीं नहीं,
तारे टिमटिमा रहे है भरपूर रोशनी से
दे रहे,
कुछ कह रहे है ये,
पैगाम- ए-जिन्दगी,
गुमानम कोई है तो क्या,
दिखाते है रास्ता उस किश्ती को, 
इन रातों में भी, 
ताकि
भटक न जाये वो इस अथाह समुद्र में,
बनते है ये मार्गदर्शक भी,
टिमटिमाते हुए रात भर,
सुबह के भोर तक,
और
चलता रहता है ये सिलसिला,
चलती रहती है जिन्दगी,
कोई
पहुँच जाता है मंजिल को,
किसी को निगल जाता है,
ये अथाह सागर,
छुपा लेता है, अपनी तलछटी  मे,
लोग
भूल जाते है, एक समय के बाद,
कि
कुछ हुआ था यहाँ,
और चल देते है- - - 
फिर उन्ही रातों मे,
जिसमे चाँद न था,
सिर्फ थे तारे,
और चलता जाता है
इसी तरह ---
जिन्दगी का कारवां

Sunday, March 13, 2011

मानवीय -मानवीयता प्रकृति से ------- मुसाफिर क्या बेईमान

मै झूमता, खुशी महसूस करता
खिलखिलाते पोधों के गमले देखकर
जो स्वछंद बढते, खिखिलाते हमेशा,
पानी जो बरसाया, नाचते-गाते दिखते गमले सभी, 
जैसे आभार करते व्यक्त, धूप, पानी-खाद के सेवन पर,
मानव क्यों नहीं सीखता, इससे 
काश बदल सकता अपना वर्ताव, पोधों जैसे
जो करें आभार व्यकत, हर उसका
जो पिलाये पानी, नहलाएं उन्हें 
परन्तु  ये मानव, चेहरा देख,
दिखाए अपनी प्रकृति, अमीबा जैसे 
मीठा बोले फ़ोन पर, वर्ना बरसायें गलियां, 
पीठ पीछे मारें तलवार, सामने दे गुलदस्ता, 
भेजें सन्देश प्यार का, है राक्षसी वर्ताव, 
सीखो मानावे प्रकृति से, घुल-मिल जाओ इसमें,
वर्ना पछतावा न हो, इक दिन,
खुद को अप्रकृत महसूस कर,
कहीं नफरत न करें, प्रकृति के चील, गिद्ध, कोवे
तुम्हारे जिस्मानी शरीर पर,
सभलों समय है, बदलो अपने आप को,
सीखो इस प्रकृति से,
ढाल लो तन, मन, सम्पूर्ण इसमें, 
पओगे इक नया जीवन,
शुरुआत करेंगे, महसूस कर पाएंगे तभी,
नया-नया स्वछंद सवेरा.