Sunday, April 8, 2012

आज का सन्देश (8TH APRIL 2012)


  • ज्ञान को व्यव्हार मे लागू करना ही औचित्यपूर्ण है. व्यव्हार की कुशलता कम का कारण स्वयं मे अहम की भावना और स्वार्थ है. व्यव्हार से ही  इंसान पहचाना जाता है.
  • व्यव्हार चाहें बड़ों से, छोटों से, बराबर उम्र वालों से हो, वो कुशलता पूर्वक होना चाहिए. बड़ों के आशीर्वाद से वंचित न हो, व्यव्हार को कुशल बनायें. बराबर उम्र वालों से अहम की भावना नहीं आनी चाहिए. स्वयं को समानता की भावना मे आकर व्यव्हार करें.
  • बड़े या छोटे की भावना मे न जाकर उन्हें बराबर का समझ अहम का विनाश कर कुशल व्यवहार करेंगे तो ज्ञानी कहलायेंगे. विनम्रता आएगी, कुशल बनेगें.
  • ज्ञानवान कुशल व्यव्हार की चाबी है.  
अपने अकुशल व्यव्हार से दूसरों के अंदर भय पैदा हो जाता है,
उससे वो Angel / परी बन आपकी RESECT तो करते है,
लेकिन आप  प्रेम, विनम्रता को खो देंगे.
मन परेशान रहेंगा. 
सेवाभाव रखें, तो परमात्म सर्व-शक्तियों को देगा.
  • विशाल हदय बन अपने को कुशल बनायें. ज्ञान, गुण, शक्तियां वो बीज है, जो कर्म करने से वृक्ष का रूप लेगा, इसमें गुणों का फल आने मे समय लगेगा. धीरज धर, निराश न हो. युक्ति-युक्त श्रेष्ठ बन.
  • साफ़ बात भी अगर उचित समय पर नहीं कही जाये, तो वो भी विनाश ही करती है. साफ़ बात, साफ़ समय, साफ़ मन से दूसरों के साफ़ मन तो छुएगी, तो रास्ता साफ़ दिल से साफ़-साफ़ दिखाई देगा. ज्ञान जहाँ समझ मे आया, व्यव्हार भी कुशल हो जायेगा.
  • स्वयं के व्यव्हार से पहले स्वयं संतुष्ट है, तो आपका व्यव्हार दूसरों को संतुष्ट कर पायेगा, वरना स्वार्थ-सिद्धि के लिए व्यव्हार अकुशल होगा.
  • SILENCE की POWER से SCIENCE की INVENTION (खोज) होती है. शांत रहने की शक्ति से स्वयं के व्यव्हार का निरीक्षण करेंगे, तो अव्यक्त की स्थिति को पहचानने और जानने से आनंद की अनुभूति होगी.