Wednesday, February 23, 2011

नीर --- बेईमान

नीर बहाते नहीं,
यों ही,
वर्ना,
सूख जायेंगे ये,
व्यर्थ ही,
शायद?
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सामना सच का--- बेईमान  
 
ख़ामोशी और खामोश निगाहें,
जब पढ़ी जाती है,
बता जाती है,
वो सब
जो हुआ
या न हुआ.
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Tuesday, February 22, 2011

सीख

रोजमर्रा की जिन्दगी मे,
एक कर्मयोगी के साथ,
घटनाये होती है, 
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष,
दे जाती है सीख और,
एक सबक,
कि पारदर्शी ही एक
कर्मयोगी है वर्ना तो वो, 
है एक कमोगी,
जो आखों से देखता है घटनाये,
परन्तु न कुछ सीख पाता है,
करवाता है  दुर्घटनाये.

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Saturday, February 19, 2011

इन्तजार-भटकाव-जवाब

मै
घूमता हुआ, जाता हूँ घर के लिए,
लौटता हूँ वापिस, किसके इन्तजार मे,
क्यों, किसलिए करता हूँ ये सब,
अगर नहीं है जवाब,
तो ये है भटकाव,
काफी है यह,
आदमी को बनाने के लिए,
पंगु और इससे भी ज्यादा,
मै
जानते हुए भी नहीं जनता,
सोचता हूँ पर नहीं सोचता,
क्यों,
किसलिए करता हूँ ये सब,
मै
घूमता हुआ जाता हूँ-----
बस----! घूमता हुआ----!

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Tuesday, February 15, 2011

इक शाम-दोस्ती के नाम

वो बैठे शांत चित्त, अख़बार बिछाये दिवार पर,
करती अठखेलियां उगलियाँ, सताने को एक-दूसरे पर,
बाटें अपने- अपने जीवन की घटनायं
जैसे सुना रहें युद्घ के वृत्तांत, मिलकर दो फोजी सिपाही 
मंद- मंद गुणगुना रहे गीतश्रवणों में एक-दूजे के,
जैसे विविध भारती प्रायोजित करता, सैनिक भाइयों का कार्यक्रम
नवम्बर की भीनी- भीनी ठंडी हवा के झोकों का,
लेते आनंद
बेखबर दुनिया सेकर रहें दिलों-मन को हल्का
करते वार्तालापअपनी-अपनी दुनिया की,
करे समाज देशशोध-प्रक्रिया, जाती प्रथा की चर्चा
पता चलाप्राचीन भारत की जाती-सूत्र के दो छोर है
ये नौजवान,
सामाजिक  बन धनो से दूर, बेठे है साथ-साथ
कसमे खाते भविष्य को सवारने की, एक०- दुसरे के,
एक को चिंता अच्छी नॉकरी, दूसरा स्वप्ने देखता बच्चो के
पता न चला, बीत गया लम्बा वक्त
साथ-साथ, बेठे दीवार पर,
 सुकून से, प्यार से,
इक शाम, साथ- साथ

Monday, February 14, 2011

किसे कहें-प्यार -------------बेईमान

वो छू गए- हिला दी बंद दिल की धड़कन 
रोंगटे खड़े हुए, सरसराहट हुई बदन में पूरे
सांसे लहरों जैसे, हिलोरे करती
रखा आंचल में सिर, करती अंगुली बेले नृत्य 
कभी बालों, माथे, नयन को छूती हुई, 
तरंगे जो निकली, सुकून पैदा हुआ आस-पास 
मंद- मंद रौशनी, इन्द्रधनुष बनाए, तरंगो को जोड़कर
दोनों कहें रोमांटिक, इक- दूजे को, दोहराए उसे,
मै हूँ- मै हूँ- मै हूँ---- रोमांटिक आपके लिए,
डूब गए दिलों की गहराही में, खोजे एक-दूसरे को,  
कितनी ही बुराईयाँ मेरी, न कोशिश की जानने की,
छूने से पहले, बस उतारा दिल के समुद्र में,
इक नया इतिहास. रचने को,
अलग है महानगरीय जीवन शेली, भोतकीय जिन्दगी से, 
क्या है ये महानगरीय मानव, शायद नहीं, 
वरना देखते एक-दूसरे में, सिर्फ भोतिक सुखों को,
अदभुत इनकी स्वछदत, निर्मलता, कोमलता, 
जो आज के प्यार से, कहीं अधिक है, विशाल है,
इसे मै क्या नाम दूं, विलक्षण,, अलबेला, 
सोचते-सोचते ----जागा तो पता चला, 
इक स्वपन था, देखा जिसे निद्रा मै,
वरना, अब न मिलते ऐसे इंसान, 
अगर मिलें, शायद,
तो होगा सिर्फ ये चमत्कार
इस मायावी महानगरी की, चकाचोंधं रौशनी में,
सिर्फ चमत्कार, हाँ शायद.

Saturday, February 12, 2011

इशार-ए-दर्पण********बेईमान

ये समाज,
बनाता हे नियम, और वो टूट जाते हे,
फिर से बनते हे कुछ कायदे,
जीते है  कुछ लोग, अपने ही दिल से,
और
लोग ताकते से रह जाते है,  
कुछ घटती है चीजे फिर से,
फिर नए अंजाम बनाए जाते है,
हाँ
यही है समाज,
जहाँ कुछ
नियम बनाए जाते है,
सिर्फ
तोड़ने के लिए, 
कुछ नियम बनाए जाते है,
हाँ

सिर्फ कुछ नियम बनाए जाते है.

Tuesday, February 8, 2011

क्या और क्या?-------- बेईमान

एक घुटन  व् तनाव से मुक्ति के लिए,        
बनाये हमने अलग-अलग रास्ते,
कुछ दूर चला अलग,
वो रास्ता फिर एक हो गया,
फिर सहा मैने,
और नोचा-खसोटा गया ये शरीर,
और रास्ते हुए दो मुहे सांप की तरह,
में उठा समभला और चला,
नई डगर पर फिर से,
लकिन फिर से हुआ गिद्धों का हमला,
नोचा-खसोटा गया अनचाहा,
और धकेला गया,
फिर से नई खोज में,
ताकि मिल सके एक राह,
जो हो सीधा सरल,
भय और डर मुझे,
क्या मुझे,
शायद नहीं क्योंकि,
नोचा-खसोटा ही तो जाऊँगा,
हाँ शायद और,
इससे जयादा क्या.

Sunday, February 6, 2011

मुक्ति------------- बेईमान

                
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Saturday, February 5, 2011

निशान - ए- जिन्दगी ..........बेईमान

आज में हिंदी ब्लॉग जगत में एक कविता के साथ पदार्पण कर रहा हूँ ...आप सभी को हिंदी की सेवा में संलगन देखते हुए मुझे भी आप सबसे प्रेरणा मिली ..आशा है आपका सहयोग और मार्गदर्शन भी मुझे मिलता रहेगा ...इसी आशा के साथ ....

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