Monday, December 26, 2011

पलों मे---जिंदगानी



वो अकेला, तन्हा 
ढूंढ़ता चन्द पल,
खुशी के,
ज्ञान को बाँट कर,
छीन लिए ये चन्द पल भी
लगा कर कालिख,
उसकी समेटी हुई खुशियों पर,                 
वो खुश था, दूसरों के हँसते हुए चेहरे देख कर,
न मालूम  था, नजर लग जाएगी,
इन खुशियों के चन्द पलों पर
सोचता है, क्यां बाटूँ
इस चन्द नन्ही खुशियों के कलमों को,
समेट लो इन्हें,
कहीं लग न जाएँ, नज़र,                  
किसी नजदीक गुजरने वालों की,
शायद-----हाँ ----फिर से---
न नज़र लग जाये इनपर भी.
               
मुसाफिर क्या बेईमान

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