Saturday, November 26, 2011

आज का सन्देश (Saturday, 26.११.२०११)


·         योग लगाने के लिए बोलने की जरुरत नहीं है, अंदर ही अंदर मन मे ध्यान धारण करें.
·         मन, वचन और कर्म ही जीवन का मूल मन्त्र है.लकिन आपका MOOD (मन) अचानक इतना ख़राब हो जाता है की FACE ठीक है, लेकिन मन विचलित है. मन का भी धयान रखें. वरना मन दुखी रहेगा तो आप खुश कैसें रहेंगे. मन की RECORDING भी वचन और कर्म मे आती है. मन हल्का रखें, परमात्मा की संगति मे रहेंगें. मन की बोझ होगा तो उड़ नहीं पाओगे. आज आपका मित्र है, कल वो आपका मित्र, हितेषी है, इसकी GUARANTEE नहीं है. जैसे सांप केंचुली को उतार कर नया SKIN धारण करता है, ऐसे ही मन का बोझ उतार कर नया ज्ञान रूप धारण करें.
ज्ञान का धन संचय करने के किये विचार-सागर का मंथन करें. ज्ञान का शौक रखो तो मंथन चलता रहेगा.
प्रश्न है--- ज्ञान मार्ग मे अपने को तंदुरुस्त रखने का साधन क्या है? ? ?
·         सदा अपने को तंदुरुस्त रखने के लिए परमात्मा/TEACHER  से जो घास-फूस मिलती है, उसे खाओ, फिर उसे स्वयं उगाओ, मंथन करो, ज्ञान को हजम करो, वो बीमार नहीं हो सकते. अलबेलापन, आलस्य ज्ञान मे आएगा, इसका अर्थ है ज्ञान हजम नहीं हुआ. ज्ञान मे विकार आने से तंदुरुस्त नहीं रह सकते. बीमार मे दर्द, बीमारी ही रहेगी, सिर्फ.
·         ज्ञान पड़ने की वजाए मंत्रो-FAST-वर्त का सहारा लिया, 40  दिन तक जाप किया, असर या काम फिर भी नहीं हुआ. कल्याण नहीं हुआ, अकल्याण ही हुआ है.
·         अच्छी शिक्षा, पढाई  का ज्ञान लें, विकारों को धक्का मारें, मंथन करते रहो अपनी  पढाई  का. जैसे-- गाय घास खाने के बाद जुगाली करती रहती है, पूरे दिन, वो तंदुरुस्त रहती है. आप भी ज्ञान-घास को खाकर, जुगालते रहें, मंथन करतें रहे, हमेशा ज्ञान की खुशी मे रहेंगे. अपनी मंजिल के प्रकाश को पाएंगे, ज्ञान रतन धारण करेंगे.
·         परिस्थितियाँ ऐसी भी आएगी, क्रोध आएगा, अच्छे मार्ग पर चलते हुए भी अलग-थलग हो जायेंगे. ये ज्ञान मे विकार है. जो मन से निकालना है. इस आसुरी स्वभाव को मन से धकेलियें. परमात्मा कल्याणकारी है.
जीवन की कुछ घटनाएँ (नदी, पहाड़, शेर जंगल मे मिलना) हमेशा याद कर ख़ुशी मिलती है, पढाई  को याद रख, खुश रहें.
·         ये परमात्मा की कुदरत है. अच्छी रीती को अपनाएं. धक्के खा-- -खाकर थक गएँ हो. उलटी-सुलटी बातें एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकल दें, कोई भी आसुरी सव्बह्व है, उसे छोड़ना है. ज्ञान रुपी पवित्र भोजन का तिरस्कार न करो. मंथन, चिंतन से ज्ञान ग्रहण करो, ख़ुशी का पारा ऊपर ही चढ़ता जायेगा. कल्याणकारी बनेगें.
मुसाफिर क्या बेईमान  

2 comments:

केवल राम said...

अति उत्त्तम ......!

SANDEEP PANWAR said...

जानकारी से परिपूर्ण