पुरानी आदतों को शरीर व् आत्मा से निकाले.
· आदतों के गुलाम न बने. सिर्फ यह कह कर, कि अब तो शरीर को आदत बन गयी है, नहीं छूटेगी, यह स्वयं का अपमान है.
दृढ बनो, सकल्पित बनो.
· पढाई मे बहाना मत करो. मित्र, भाई, बहिन, दोस्त --- बीमार है, ये बहाने जीवन मे अवरोधक है. स्वावलम्बी बनो.
· झूट, गुस्से को आदत मत बनाओ. अब आप सदाचारी बने या विकारी बने, ये आपके ऊपर है.
· हर प्रश्नों का जवाब आना चाहिए, तभी परमात्मा हमें समर्थ बनायेगे, आदतों की वजह से बहानेबाजी करेंगे, तो स्वयं को व्यर्थ बनायेगे.
· खुद इसे याद रखेगें, तबी औरो को याद करवाएगें.
आदतों की बहानेबाजी को नकारे, वर्ना इस आदत-बीमारी का इलाज नहीं है. यहाँ बहाना नहीं चलेगा.
· मै (परमात्मा)सावधान कर रहा हूँ, insult नहीं कर रहा हूँ. कायदे (Rules) के विरुद्ध कोई काम न करो. लाचारी हालत मे आपसे काम न हो, ठीक है. लकिन बहानेबाजी नहीं.
· स्वयं को खुशबूदार फूल बनाओ, वर्ना आक का फूल भी है, जिसमे दुर्गन्ध है. ये दुर्गन्ध बर्बाद करता है.
मन मना: भव.
· कोई भी काम कायदे के विरुद्ध नहीं करना है. जितना हो सके, हर कार्य अपने हाथों से करना है. इस यज्ञ की Service ख़ुशी से करनी है.
· पढायी मे बहाना नहीं देना है, बीमारी मे भी पढायी करनी है.
कर्म और योग का Balance ही परमात्मा की Blessings का अधिकारी बनाएगा.
मुसाफिर क्या बेईमान
No comments:
Post a Comment