Sunday, May 29, 2011

रोका किसने मुझे?




कहना था कुछ,
मगर   रोका मुझे, इक  बात ने,
आपकी - - -
मिला जवाब - - -                                                 
उम्मीदों  मे,  नहीं  जिया  करते हम,
चलते  है,  रास्तों  को  बनाते  हुए,
ताकि
  फिसल  पाए,  
कोई  गैर या अपना,
जीते है,
इन्ही असूलों पर,  
पसंद या नापसंद,
ये असूल,
न सीखा मैंने,
फिर किसने, रोका उसे,
शायद झंझावतों ने उसके
क्या निकल पाओगे
इससे
मिल पाए जवाब, अगर,
रोकना, अपने को,
कहने से कुछ,
चल करइतला देना
इक  बात क़ी,
निकल जाये- - -
गुमान दिल के,
इक बात, कहने से
शायद----
हाँ, सही है - - -
शायद.   - - -मुसाफिर क्या बेईमान

2 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अंदर की बात बाहर आने के लिए संवाद अत्यावश्यक है।

सुंदर भाव हैं कविता के
आभार

रश्मि प्रभा... said...

उम्मीदों मे, नहीं जिया करते हम,
चलते है, रास्तों को बनाते हुए,
waah