Saturday, May 28, 2011

जीवन सारांश

पलट कर देखता हूँ, 
तो 
लगता है ये सब-कुछ, 
ताजा-ताजा
परन्तु 
महसूस होता, एकांत मे 
कि
बीत गयी 
सदियाँ लेकिन
और 
जी रहें ---
है जिन्दा हम,
इसी कशिश मे,
कि कल फिर 
से लायेगा
ताजगी 
ताजा-ताजा 
                ---मुसाफिर क्या बेईमान 
 
 

1 comment:

केवल राम said...

बस इसी बेहतर कल की तलाश में तो इंसान अपना सारा जीवन बिता देता है कल उसके पास बेहतर आये या नहीं लेकिन आस तो हमेशा रखता है ...आपका आभार