तारे टिमटिमाते, भरपूर रौशनी से,
गा रहें, पैगाम-ऐ-जिन्दगी,
दिखाते रास्ता, गुमनाम किश्ती को,
अंधियारी रातों मे,
ताकि,
भटक न जाये वो, अथाह समुद्र मे,
बनते मार्गदर्शक,
टिमटिमाते, रात से भोर तक,
टिमटिमाते, रात से भोर तक,
और
चलता सिलसिला, सफ़र-ऐ-जिन्दगी,
पहुंचे मंजिलों को,
या
या
निगल जाता, ये अथाह सागर,
छुपा लेता, तलहटी की बगल मे,
कि
कुछ हुआ था यहाँ
और चल देते है,
फिर उन्ही रातो मे,
जिसमे चाँद न था
सिर्फ थे तारे,
और चलता,
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चलता सिलसिला, सफ़र-ऐ-जिन्दगी,
पहुंचे मंजिलों को,
या
निगल जाता, ये अथाह सागर,
छुपा लेता, तलहटी की बगल मे,...waah
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