Friday, May 20, 2011

किसे कहें शराफत--? ? ? ? ? ? ?

मैंने शराफत को दिल से माना,
जाता था, मंदिर हर सुबह
होती थी, दिन की शुरुआत
शराफत तो लगा तमाचा
पाया अख़बार मे, पंडित की करतूत, 
की दूसरे की किस्मत, बनाने को 
मिलती भगवान से इजाजत, 
बलात्कार करने की, 
मिटा दी उसकी किस्मत, 
अपनी भूख मिटाने को,
ऐसे हजारों किस्से है, आज 
किसे कहे शराफत,
शराफत के पीछे छिपे, दरिन्द्ता  को
या उस इंसान को, समझे ये समाज,   
नासमझ, बेवकूफ, ईमानदार 
माने इसानियत को, उसकी मेहनत को,
छोड़ा आपकी खुद्दारी पर, 
जैसा मानोगे, वैसा पाओगे,
 इंसान---- या--- शैतान---.
                             मुसाफिर क्या बेईमान








  

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

भाव से भरी हुई बहुत ही सुंदर रचना.....धन्यवाद।