वो बैठे शांत चित्त, अख़बार बिछाये दिवार पर,
करती अठखेलियां उगलियाँ, सताने को एक-दूसरे पर,
बाटें अपने- अपने जीवन की घटनायं
जैसे सुना रहें युद्घ के वृत्तांत, मिलकर दो फोजी सिपाही
मंद- मंद गुणगुना रहे गीत, श्रवणों में एक-दूजे के,
जैसे विविध भारती प्रायोजित करता, सैनिक भाइयों का कार्यक्रम,
नवम्बर की भीनी- भीनी ठंडी हवा के झोकों का,
लेते आनंद,
बेखबर दुनिया से, कर रहें दिलों-मन को हल्का,
करते वार्तालाप, अपनी-अपनी दुनिया की,
करे समाज देश, शोध-प्रक्रिया, जाती प्रथा की चर्चा,
पता चला, प्राचीन भारत की जाती-सूत्र के दो छोर है,
ये नौजवान,
सामाजिक बन धनो से दूर, बेठे है साथ-साथ
कसमे खाते भविष्य को सवारने की, एक०- दुसरे के,
एक को चिंता अच्छी नॉकरी, दूसरा स्वप्ने देखता बच्चो के,
पता न चला, बीत गया लम्बा वक्त,
साथ-साथ, बेठे दीवार पर,
सुकून से, प्यार से,
इक शाम, साथ- साथ
1 comment:
दोस्ती की तो बात ही कुछ और है ....अगर अच्छे दोस्त हों तो जिन्दगी का सफ़र भी यूँ ही बीत जाए ....सुंदर कविता
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