एक घुटन व् तनाव से मुक्ति के लिए,
बनाये हमने अलग-अलग रास्ते,
कुछ दूर चला अलग,
वो रास्ता फिर एक हो गया,
फिर सहा मैने,
और नोचा-खसोटा गया ये शरीर,
और रास्ते हुए दो मुहे सांप की तरह,
में उठा समभला और चला,
नई डगर पर फिर से,
लकिन फिर से हुआ गिद्धों का हमला,
नोचा-खसोटा गया अनचाहा,
और धकेला गया,
ताकि मिल सके एक राह,
जो हो सीधा सरल,
भय और डर मुझे,
क्या मुझे,
शायद नहीं क्योंकि,
नोचा-खसोटा ही तो जाऊँगा,
हाँ शायद और,
इससे जयादा क्या.
1 comment:
यह इंसान की फितरत है ..कि वो अपना बजूद तलाशता है ...लेकिन जब उसे एहसास होता है कि वास्तविकता कुछ और है तो फिर वो वापिस मुड जाता है ....तब उसे लगता है कि रस्ते चाहें अलग चुन लिए जाएँ लेकिन अन्तत वो एक जगह मिल जाते हैं ...बहुत सुंदर भाव ...आपका शुक्रिया
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