Tuesday, February 15, 2011

इक शाम-दोस्ती के नाम

वो बैठे शांत चित्त, अख़बार बिछाये दिवार पर,
करती अठखेलियां उगलियाँ, सताने को एक-दूसरे पर,
बाटें अपने- अपने जीवन की घटनायं
जैसे सुना रहें युद्घ के वृत्तांत, मिलकर दो फोजी सिपाही 
मंद- मंद गुणगुना रहे गीतश्रवणों में एक-दूजे के,
जैसे विविध भारती प्रायोजित करता, सैनिक भाइयों का कार्यक्रम
नवम्बर की भीनी- भीनी ठंडी हवा के झोकों का,
लेते आनंद
बेखबर दुनिया सेकर रहें दिलों-मन को हल्का
करते वार्तालापअपनी-अपनी दुनिया की,
करे समाज देशशोध-प्रक्रिया, जाती प्रथा की चर्चा
पता चलाप्राचीन भारत की जाती-सूत्र के दो छोर है
ये नौजवान,
सामाजिक  बन धनो से दूर, बेठे है साथ-साथ
कसमे खाते भविष्य को सवारने की, एक०- दुसरे के,
एक को चिंता अच्छी नॉकरी, दूसरा स्वप्ने देखता बच्चो के
पता न चला, बीत गया लम्बा वक्त
साथ-साथ, बेठे दीवार पर,
 सुकून से, प्यार से,
इक शाम, साथ- साथ

1 comment:

केवल राम said...

दोस्ती की तो बात ही कुछ और है ....अगर अच्छे दोस्त हों तो जिन्दगी का सफ़र भी यूँ ही बीत जाए ....सुंदर कविता