Saturday, February 12, 2011

इशार-ए-दर्पण********बेईमान

ये समाज,
बनाता हे नियम, और वो टूट जाते हे,
फिर से बनते हे कुछ कायदे,
जीते है  कुछ लोग, अपने ही दिल से,
और
लोग ताकते से रह जाते है,  
कुछ घटती है चीजे फिर से,
फिर नए अंजाम बनाए जाते है,
हाँ
यही है समाज,
जहाँ कुछ
नियम बनाए जाते है,
सिर्फ
तोड़ने के लिए, 
कुछ नियम बनाए जाते है,
हाँ

सिर्फ कुछ नियम बनाए जाते है.

2 comments:

केवल राम said...

और फिर एक नियम के बाद दुसरे को बनाने की कवायद शुरू हो जाती है ...फिर उसे भी तोड़ दिया जाता है ..और यह सिलसिला अनवरत चलता रहता है और आदमी .....बस ....

केवल राम said...

आपका कहना सही है ....शुभकामनायें