रोंगटे खड़े हुए, सरसराहट हुई बदन में पूरे
सांसे लहरों जैसे, हिलोरे करती
रखा आंचल में सिर, करती अंगुली बेले नृत्य
कभी बालों, माथे, नयन को छूती हुई,
तरंगे जो निकली, सुकून पैदा हुआ आस-पास
मंद- मंद रौशनी, इन्द्रधनुष बनाए, तरंगो को जोड़कर
दोनों कहें रोमांटिक, इक- दूजे को, दोहराए उसे,
मै हूँ- मै हूँ- मै हूँ---- रोमांटिक आपके लिए,
डूब गए दिलों की गहराही में, खोजे एक-दूसरे को,
कितनी ही बुराईयाँ मेरी, न कोशिश की जानने की,
छूने से पहले, बस उतारा दिल के समुद्र में,
इक नया इतिहास. रचने को,
अलग है महानगरीय जीवन शेली, भोतकीय जिन्दगी से,
क्या है ये महानगरीय मानव, शायद नहीं,
वरना देखते एक-दूसरे में, सिर्फ भोतिक सुखों को,
अदभुत इनकी स्वछदत, निर्मलता, कोमलता,
जो आज के प्यार से, कहीं अधिक है, विशाल है,
इसे मै क्या नाम दूं, विलक्षण,, अलबेला,
सोचते-सोचते ----जागा तो पता चला,
इक स्वपन था, देखा जिसे निद्रा मै,
वरना, अब न मिलते ऐसे इंसान,
अगर मिलें, शायद,
तो होगा सिर्फ ये चमत्कार
इस मायावी महानगरी की, चकाचोंधं रौशनी में,
सिर्फ चमत्कार, हाँ शायद.
2 comments:
यह कविता VALENTINE DAY को DEDICATE किया है.
सिर्फ भोतिक सुखों को, अदभुत इनकी स्वछदत, निर्मलता, कोमलता, जो आज के प्यार से, कहीं अधिक है
वर्तमान समय की वास्तविकता को बखूबी अभिव्यक्त किया है ...
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