तलाश फिर से सुकून की,
जिन्दगी की,
जिंदगानी की,
कुछ पल बिताये तो लगा,
महसूस हुआ,
कि
शायद ठहर गयी है तलाश,
अब न पड़ेगा भटकना,
टूट जाता है सब,
किसी सुंदर ख्वाब की तरह,
और
फिर से
घेरती है ये बैचेनी,
नोचती है जर्रा-जर्रा,
मजबूर करती है,
ढूँढने को,
निकलती है एक नई तलाश मे
फिर से
सुकून की.
------------- मुसाफिर क्या बेईमान
3 comments:
सुकून की तलाश .... वाह
शायद ठहर गयी है तलाश,
अब न पड़ेगा भटकना,
टूट जाता है सब,
किसी सुंदर ख्वाब की तरह,
जीवन भी क्या विरोधाभास है ...कहीं सकूं की तलाश तो कहीं खुद को समझने का प्रयास ....!
shaandaar rachna
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