परेशानी को सुनकर लगा,
अपनी दिक्कतें- - -
कुछ भी नहीं,
यूं ही परेशान सा, घूमता है, क्यों,
फंसे है, दुनिया भर से, लोग,
इसी जंजाल मे
पलक झपकते, खत्म हो जाती
तुम्हारी परेशानियाँ
फिर भी दिखते हो
परेशान से - - -
क्या, ऐसा तो नहीं,
हिस्सा बना लिया
जीवन का इसे
और ---
हर मर्म की दवा
दिखती है परेशान----परेशान
तमाम करेंगे, इसे
सुकुन मिलेगा,
वर्ना तो,
आप है ही,
परेशान-----परेशान से.
मुसाफिर क्या बेईमान
4 comments:
waah... bahut badhiyaa
हम सब परेशान....
तुम भी परेशान हम भी परेशान...
खुबसूरत कविता..
यह परेशानी का सबब ...जिस किसी को भी समझ आ जाए वह कभी परेशान ही न हो ...बहुत सुंदर भावनाएं
तुम भी परेशान हम भी परेशान...
Post a Comment