Wednesday, August 3, 2011

क्या मै हूँ - - -?



परेशानी को सुनकर लगा,
अपनी दिक्कतें- - -
कुछ भी नहीं,

यूं ही परेशान सा, घूमता है, क्यों,
फंसे है, दुनिया भर से,
लोग,
इसी जंजाल मे
पलक झपकते,
खत्म हो जाती
तुम्हारी परेशानियाँ
फिर भी दिखते हो
परेशान से - - -
क्या, ऐसा तो नहीं,
हिस्सा बना लिया
जीवन का इसे
और ---

हर मर्म की दवा
दिखती है परेशान----परेशान
तमाम करेंगे, इसे
सुकुन मिलेगा,
वर्ना तो,
आप है ही,
परेशान-----परेशान से.

                                मुसाफिर क्या बेईमान 




  

4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

waah... bahut badhiyaa

Shekhar Suman said...

हम सब परेशान....
तुम भी परेशान हम भी परेशान...
खुबसूरत कविता..

केवल राम said...

यह परेशानी का सबब ...जिस किसी को भी समझ आ जाए वह कभी परेशान ही न हो ...बहुत सुंदर भावनाएं

संजय भास्‍कर said...

तुम भी परेशान हम भी परेशान...