स्कूल मे कक्षा की खिड़की से,
क्या देखा
सामने घर से, धुआँ व् चीत्कार
निकल पड़े बचाने को,
पाया महिला को जले हुए,
दिखाया डॉक्टर को,
पता चला अगले दिन, नयी दुल्हन की मोंत
पूछा स्कूल टीचर से, बताया दहेज़ ने जलाया
कसम ली, बिन-दहेज़ करेंगे शादी,
........................................
हुई शादी, राजधानी के
आर्य समाज मंदिर मे
नई-नवेली बहु थी, कंप्यूटर मे स्नातक,
रात को आठ बजे आना,
कमाना सिर्फ पांच हज़ार,
यही थी नौकरी,
.................................
रसोई न आती थी उसे बनानी,
लेकिन मैंने भी यह ठानी,
रात का खाना, होता था तेयार,
चला कुछ दिन, फिर कहा मैंने,
शिक्षकों का हमारा परिवार,
और दिखाई नयी राह,
.....................................
करवाया दाखिला, उच्च शिक्षा मे,
बहुत खुशी मिली, मुझे,
और फक्र हुआ, अपने पर,
याद आ गया, बचपन का स्कूल
लिया बदला मैंने,
बचपन की, उस नयी दुल्हन की मोंत का,
................................
आई तबदीली, अचानक उसमे,
लगी बुलाने पुलिस, बिना बात के बारी--बारी,
इल्जाम लगाये, मार-पीट के, दहेज़ की मांग के,
और पहुंचे, अदालती कटघरों मे,
न्यायविद ने कहा, दोनों पढ़ी-लिखी जमात है,
क्या समझाएं,
.............................
कितने मे समझोता करेंगे, बहु से पूछा,
बोले न्यायविद, कीजिये समझोता
वर्ना जाईये, तिहाड़ जेल मे,
कितना समझाया, बिन दहेज़ की है शादी,
न्यायविद को,
जवाब मिला, समझोता कीजिये,
कहा मैंने, ये तो दहेज़ है,
ये समझ कर, दे दीजिये,
लेकिन दीजिये,
............................
मैंने कहा, केस को लडूंगा,
आने दो, सच्चाई सामने,
क्या फायदा,
करना तो है,
समझोता---- अंत मे,
कौन पूछता है, आपकी सच्चाई को,
कहा मैंने, मेरी है सिर्फ एक गलती,
की है शादी,
जवाब मिला, हाँ तो,
ये है, जुर्माना उसका,
..................................
न समझ आ रहा,
क्या और क्यों बनते,
दरिन्दे समाज मे, जलाते बहुओं को,
या मारें बहु, अपने पति को, मिल दोस्त के साथ,
और लगाये, इल्जाम
और लगाये, इल्जाम
पति ही चरित्र-हीन है,
...................................
न समझ आ रहा,
और उड़ा दूं , समाज की इन बुराइयों को,
किस-किस से लडेगा,
यहाँ जोंक ज्यादा, इंसान कम है मिलते,
जो भी मिलते,
जकड़ें हुए है, सेकडों जोंकों से,
ना- इलाज है ये मर्ज,
.................................
अब कानून है, महिलायों के पक्ष मे,
ताकि समानता आये, समाज मे,
जरुरी है, ठीक से पालन इसका,
कहीं यही न बन जाये,
इक नासूर,
बहु से बहु तक,
और चलता रहे सिलसिला
जलने-जलाने का,
लगातार, बार-बार.
..................... मुसाफिर क्या बेईमान
यह कविता आदरणीया रश्मि प्रभा जी के ब्लॉग "मेरी भावनायें" ब्लॉग पर लिखी "कविता मामला गंभीर" है से प्रेरित है .
यह कविता आदरणीया रश्मि प्रभा जी के ब्लॉग "मेरी भावनायें" ब्लॉग पर लिखी "कविता मामला गंभीर" है से प्रेरित है .
2 comments:
न समझ आ रहा,
क्या और क्यों बनते,
दरिन्दे समाज मे, जलाते बहुओं को,
या मारें बहु, अपने पति को, मिल दोस्त के साथ,
और लगाये, इल्जाम
पति ही चरित्र-हीन है,
...................................ajab haal hai ab
@यहाँ जोंक ज्यादा, इंसान कम है मिलते,
जो भी मिलते,
जकड़ें हुए है,सेकडों जोंकों से,
यही सच्चाई है।
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