क्या लगाव है,
सोचे, दिन-रात सिर्फ मेरा---
प्यार मे, प्यार से,
किया न्योछावर, सब कुछ मैंने,
प्यार मे खुशी के लिए,
माना, खुशकिस्मत इंसान अपने को,
कद्र की उनके जज्बातों की, प्यार मे,
छुपा न पाया, कोई पासवर्ड जिन्दगी का,
बाटा, जिन्दगी की बंद किताब, इ-मेल, बैंक कार्ड
सभी की चाबी, उसके प्यार मे,
वो करें शक मेरे प्यार मे,
गलत न समझा, कभी मैंने,
यही अपनापन है शायद,
बाटी, खुशियाँ, तमाम जिन्दगी की, .........................
वो उसका शक प्यार मे,
सिर्फ छुपाये उसकी नीयत,
पता चला,
लोट कर आया घर, खुले दरवाजे से,
सुनी गुफ्तगू दूरभाष पर उसकी
दहल गया दिल, सुन कर,
मौत का फरमान अपनी,
न बचा था समय,
जिन्दगी को समेटने का,
कहा मुझे,
घर न मिल रहा, मेरे मित्र को
आती हूँ, जानम, लेकर कर उसे,
मैंने सोचा, शायद अंतिम बार
.....................
जानी थी लाश मेरी,
जिस गाड़ी मे,
उलट गयी बीच बाज़ार,
बनी उनकी मौत का कारण,
क्या कहा,
खुदा का फरमान था, लें सब्र से काम,
दिलासा मिला, समाज से,
मैंने किया सलाम,
फरमान को उसके,
और दहन किया उसी नीयत को,
उसके साथ,
क्या कहें समय का हेरफेर,
न बता सकें, मर्म अपना,
ताकि न तबाह हो पाए,
क्या कहें - - -दीवानों को,
संभल कर, संभल से चलना,
संभालता से
---------- मुसाफिर क्या बेईमान
2 comments:
खुदा का फरमान था, लें सब्र से काम,
दिलासा मिला, समाज से,
मैंने किया सलाम,
फरमान को उसके,
और दहन किया उसी नीयत को,...bahut badhiyaa
क्या कहें समय का हेरफेर,
न बता सकें, मर्म अपना,
ताकि न तबाह हो पाए,
विश्वास प्यार से,
क्या कहें - - -
दीवानों को,
संभल कर, संभल से चलना,
संभालता से
बस यही नियति है ....संभल कर चलना आवशयक है .....आपका आभार
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