Sunday, April 17, 2011

लाल से लाल की- शोभा यात्रा

 दस्तक दी, उड़ा दिया
मिटटी  को, इतिहास पर बिछी चादर जैसे 
पूछा हैरानी  से, मुसाफिर तुम,  
द्वंदात्मक भौतिकवाद से, प्रभु भक्त, कैसे
जो कर दे भस्म घर को, कैसा भौतिकवाद,
क्या वैज्ञानिक समाजवाद, बनता राख के ढेर पर,
क्या इतिहासिक भौतिकवाद, बनता जिन्दा मानवों की दरगाह पर, 
जिसने दिया बचपन, अपनी जवानी, इस द्वन्द को, 
संघर्ष किया वामपंथ की राह पर, ईमानदारी से, 
लड़ा समाज के उन असूलों से, पूंजीवाद के नाम पर, 
क्या मिला, 
झुलसा आग की लपटों मे, मेरा शरीर, 
फेंका पेट्रोल, पानी समझ कर, अपने कामरेड पर,
जो बचा जिन्दा, तो प्रभु की नियामत है, 
क्या शोभा यात्रा है, देखें सभी अपनी-अपनी नजर से,
हम चले वर्तमान मे, अपने इतिहास की कब्र को लाल कर,
जिन्दा रहें तो मिलेंगे, यहीं इस जन-मानस मे
न मार सकेगा कोई, विचारो को मेरे,
वो तो जायेंगे, मेरे साथ ही, 
इस जगत से,
समझने  की जरूरत है, वर्ना इक ताल देना हस कर,
प्रभु भक्त समझ कर,
हाँ---- समझ कर कुछ भी,
शायद.  
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3 comments:

केवल राम said...

मार्क्सवादी दर्शन से प्रभावित कविता में आपने जीवन को सही सन्दर्भों में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है ...आपका आभार

हरीश सिंह said...

बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना,
मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके.समाज में समरसता,सुचिता लानी है तो गलत बातों का विरोध करना होगा,
हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

SANDEEP PANWAR said...

जाट देवता की राम-राम,
आप के बाद वाले दोनो फ़ोटो इस लेख से मेल खाते है।
लिखते रहो-लगे रहो?