"फितरत पर नकाबों के इतने रंग ,
कुदरत भी देख रह जाती है दंग ,शायद कुदरत बेचारी इस कदर बेखबर है ,
की इंसानी फितरत उससे भी कहीं बुलुंद है....!!"
"न करो मजाक कुदरत को, बे-खबर समझ कर,
बहा ले जायगी, इक सुनामी की झलक दिखा कर,
न छेडो इसके, कुदरती रंगों को,
नका---बी फितरतों पर पोत देगी, इक सुर्ख काली स्याही जैसे,
दिखा न पाओगे, खूबसूरती अपनी,
बेखबरी से,------ बेखबर को, -----
लगातार, बार------बार----.
************************** मुसाफिर क्या बेईमान
शुक्रिया शालिनी जी, आपके कमेंट्स से प्ररित होकर ये विचार प्रस्तुत किया है.
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