समझ मे आ जाये, कमबख्त,
बदलते जज्बात इश्क मे,
वफ़ा से नजर आयगी, बेवफाई उसकी
सहते रहे जुल्मो-सितम,
इश्क के नज़ारे समझ कर,
अपने-अपने न रहे,
पराए न गैर सही
मयखाने तो बहाने बने, इश्क मे,
अभी तो इश्क, की देखी झलक,
न जाने, क्या---क्या तमाम है बाकि,
इस सफ़र के दरमयान.
***************मुसाफिर क्या बेईमान
***************मुसाफिर क्या बेईमान
4 comments:
bahut pasand aya!!
Fitrat par Nakabon ke itne rang,
Kudrat bhi dekh reh jati hai dung,
Shayad Kudrat Bechari is kadar bekhabar hai,
Ki Insani Fitrat usse bhi kahin bulund hai..............!!!!
शालिनी जी, कृपया, आप मेरा कमेन्ट इस पर देखें.
http://safar-jindgika.blogspot.com/2011/04/blog-post_23.html
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
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