Friday, April 1, 2011

मेरा गुरुकुल---यादें मेरी

कहा गया, वर्णित है---
जैसा करोगे, वैसा भरोगे,
बता पायेगा, जीवन का अनुभव ही,
क्या-----
प्यार मे धोखा दिया, धोखा पाया,
और पालतू कुते ने काट खाया,
क्या-----
मारा गया कुर्सी पर बैठे---बैठे, हार्ट अटैक से,
पाई अथाह रुपयों की गठरियाँ, उसके ऑफिस से,
क्या---
भरी जवानी मे सिर गंजा हुआ, ठोकर लगी, इंतकाल हुआ,
नंगी राजनीति का खोफ था, उसका, लोगों के दिलों मे,
क्या----
छात्र--अध्यापक को गोली मार दी, विश्वविधालय के प्रांगन मे,
विश्वविधालय शिक्षा के केंद्र न रह कर, अदालती कटघरों मे खडे है,
क्या-----
साक्षात्कार कक्ष को उड़ा दिया, बम से, सभी निष्प्राण हुए,
पंद्रह साल से इंतजार किया, सैकड़ों साक्षात्कार दिए, लेकचरर बनने हेतु,
क्या---
मेरा विश्वविधालय मेरा गुरुकुल, नहीं रहा है ये, बन गया भूतों का डेरा,
जहाँ वातावरण मे सर्वत्र शिक्षा की, खुशबू फैली रहती थी,
थकान उतारने के लिए, चाय--कैंटीन थी, पेड़ के नीचे,
आओ, करें यादें इकटठी, बनाये नया वातावरण,
निकाले उन्हें, जो फंसे हुए है, कटघरों के दायरों मे,
फैलाएं सर्वत्र, उसी भीनी-भीनी खुशबू को, ज्ञान से,
प्रकाश से, सर्वत्र ही सर्वत्र.
                                             *******************मुसाफिर क्या बेईमान 

3 comments:

रश्मि प्रभा... said...

sabkuch badal gaya hai ...

केवल राम said...

ठीक है भाई हम भी शामिल हो गए आपकी यादों में और और हमने भी याद कर लिया खुद को कर लिया विश्लेषण अपने जीवन के बीते पलों का और डायरी के जर्द पन्नों को खंगाल लिया ..लेकिन जीवन का क्रम अनवरत रूप से चलना ही है ..बस ...आपका आभार

सदा said...

बेहतरीन शब्‍द रचना ।