विषय विवाद का बन गया,
और दंगे हो गए शहर मे
खूब दूंढा न मिल सका, कारण विवाद का
लकिन सैकडो मारे गए, इस गफलत मे
पूछा केवल राम से,
किस मुर्दे को जलाया, किसे दफनाया,
कौन धर्म, जाती, कैसे पता चला जब क़त्ल किया मानव का
क्या मानोगे मेरी बात, कहा मैंने
हर पल, हर क्षंण, बदलाव महसूस किया,
कभी जीवन मे,
कीजिये, तो पाएंगे इक उमंग, इक तरंग,
नहीं किया, और बना लिया स्थूल सा ये जीवन.
किया बचाव, कातिल का दंगों मे
जला घर किसी का, लेकिन लपटों ने काला किया तेरे बसेरे को
निकलो बाहर इस स्थूलता से, करों महसूस सिर्फ
बदलते हर पल, हर क्षंण को
पाएंगे विधि विधाता गोड, अल्लाह, भगवान, रचेयता की
यही सत्य है जीवन का, जब दिल करे, मानना तभी.
मानेंगे तो ठीक, वर्ना हम तो इस पथ के यात्री है,
झूठ क्या कहेंगे.
सोचिये --------मुसाफिर क्या बेईमान-----
2 comments:
होली की बहुत बहुत शुभकामनाये आपका ब्लॉग बहुत ही सुन्दर है उतने ही सुन्दर आपके विचार है जो सोचने पर मजबूर करदेते है
कभी मेरे ब्लॉग पे भी पधारिये में निचे अपने लिंक दे रहा हु
धन्यवाद्
http://vangaydinesh.blogspot.com/
http://dineshpareek19.blogspot.com/
http://pareekofindia.blogspot.com/
बहुत अच्छा लगा आपकी साईट पर जाकर. लकिन पूरी तरह शायद नहीं कुल पाया. कोई बात नहीं. http://vangaydinesh.blogspot.com/
पुस्तकों को देखना अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर.
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