Wednesday, July 20, 2011

क्या करें हम- - -दिल का

भूला बैठे क़ी,
कुर्बान किया, दिल को      
 दिले---जान समझ कर,
लुटा दिया जहान,
अपना समझ कर,
वो हमें ही चले, लूट कर,
क्या कहें,
सिर्फ बेवफाई- - -शायद
**************
ले चले वो,
खजाना, दिलें-इश्क के समुद्र से,
कंगाल हुए, इश्क के मंजर में फंस कर, 
न क़ी, उफ़ तक,
न इक, आह भी निकली
नहीं देखा,
काफिले को उसके मुड़कर,
न किया पीछा, उन रक्त भरे, स्याह निशानों का,
लहूलुहान किया, जिन कदमो ने दिल को मेरे,
और
भूला दिया, एक हसीं ख्वाब  क़ी तरह
*************
साल बीता,
न कुछ यादें थी, उस हसीं लुटेरे क़ी,
लेकिन, कमबख्त, बदमिजाज दिल,
हाँ, इस चमड़े के दिल ने,
दिल को दिया था दिल,
और रोया, कमबख्त दहाडे मार के,
इक दिन, ये दिल,
होश संभाला तो पाया, आइ सी यू मैं
इस बदमिजाज दिल को,
न समझ पाए, दिल का डॉक्टर,                  
इस बदमिजाजी को,
कहा मैंने, दिल तो गया,
बेवफा क़ी बेवफाई से,
ये तो चमड़े का, लोथड़ा है, अब सिर्फ,
जिन्दा तो कर देंगे, आप इसे,
न धड़क पायेगा, फिर से दोबारा,
वैसा ही,
जैसा, चाहते  है आप.
************* 
लुट जाने के बाद,
क्या ना-उम्मीद  करे, उम्मीद से, 
नीलामी मे बिक गया, लूट का माल,
इस बे-दिली क़ी, मण्डी मे,
**************
ये आज का इश्क है, जनाब
बेसमझी न करना - - -
वरना, रह जायेगा, चमड़े का लोथड़ा
ये दिल,
हाँ, सिर्फ चमड़े का,
शायद ----. 

3 comments:

संजय भास्‍कर said...

अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|

PA said...

Your poem is wonderful... directly coming from your insight .. but perhaps life is playing very sadly with you.
God bless you

मुसाफिर क्या बेईमान said...

वो कह गए, पीये हुए,
छेड गए, उदासी का वीराना,
पसंद आया, उनका ये तराना भी.
शुक्रिया, जनाब PA जी