सफ़र-जिन्दगी का
"समाज और संस्कृति -अपने संस्कार"
Thursday, June 14, 2012
साथ किसका ----
जिन्दगी के इस सफर मे,
ईक साथ चलता है हमेशा
,
उसे भी छीन लेता है,
रात का गुमनाम अँधियारा,
मिल जाये
ये साथ तो बताना,
न मिले तो, भूल जाना
,
उस साथ को,
परछाई समझ कर.
मुसाफिर क्या बेईमान
2 comments:
केवल राम
said...
आत्मचिंतन को प्रेरित करती रचना ...!
June 16, 2012 at 10:09 PM
Unknown
said...
beautiful.....
September 16, 2012 at 4:31 PM
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2 comments:
आत्मचिंतन को प्रेरित करती रचना ...!
beautiful.....
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